हम बात कर रहे थें गुरु महाराज के द्वारा कहा गया कहानी “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे” के बारे में,जहाँ हरियाणा के किसी एक आश्रम में साधु बाबा जब श्री श्री गीता का श्लोक को सम्झा रहे थें, और एक सरारति युवक बार-बार बोल रहा था ,” नहीं समझा महाराज “। इस लिए साधु बाबा भी उसे बहुत अच्छे ढंग से बार-बार सम्झाने का परियास करने के बाद, उन्हें जब ज्ञात हुआ कि वह युवक सरारत कर रहा है। तो उन्होंने जिस तरह से फिर उसे समझायें। अब आगे–।
इस बार महाराज ने अपने पास पङे धुनी का एक लकङे को अचानक से उठाएँ और उस आदमी का बाल पकड़ , दे दना-दन दो-चार फराटे जङ दिएँ। तगङे महाराज के हाथों इस प्रकार Treatment (उपचार) से वह युवक एक दम से सहम कर बिवर्ण हो गया । महाराज उसके बाल को पकङे हुए सर को उपर उठाकर पुछें _ “बोलो ,अब समझा? घबराए हुए युवक हाथ जोङकर कहा_ हाँ, हाँ , जी महाराज । समझा ! समझा! ठीक से समझ गया। मुझे माफ कर दो, छोङ दो मुझे!
साधु बाबा (महाराज) बिना छोङे बोलें – ” पहले जो समझाया _वह था – धर्मक्षेत्र ! और अब जिस तरीका से समझाया यह है कुरुक्षेत्र! इसके बाद साधु बाबा उसका बाल छोड़ दियें। तब वह लङका छिटक कर करिवन ४/५ हाथ दुर जा कर खङा हो गया। इसके बाद प्रणाम कर अती शीघ्रता से वह स्थान जोड़कर चला गया ।
यह कहानी कहने के उपरांत गुरुमहाराज हम सब को बोलें —— यह जो चित्र यहाँ पर रखा गया —– यही हमेशा – हमेशा हरक्षेत्र के लिए सत्य है ।कुरुक्षेत्र का युद्ध के पहले भगवान श्री कृष्ण भी बात चित के जरिये, शांति रुप से विवाद को निपटारा करने के लिए परियास किये थें —— परन्तु सम्भव नहीं हो पाया। इसलिए प्रथम था धर्म क्षेत्र- वह जब सफल नहीं हुआ तभी तो हुआ कुरुक्षेत्र । (कहानी – स्वामी परमानंद जी। संकलक श्रीधर बनर्जी ” कथा प्रसंग “। Translated by Sudhir Sharma, a former student of Paramananda Mission Banagram.)