हम बात कर रहे थें पान वाला कहानी का जहां पर पानवाला दोपहर में ही अपने गुमटी में नींद से सो रहा था । और एक ग्राहक आकर उसे उठाकर ठीक ढंग से दुकान चलाने की बात समझा रहा था । और क्या क्या फायदा होगा यह भी उसे समझाने का प्रयास कर रहा था । परंतु पानवाला हर बार एक ही बात पुछे जा रहा था – यह सब करने से क्या होगा ? अब आग —-
ग्राहक – निर्बोध – बुद्धू ! जब सब कुछ हो जाए गा तो आराम करना बड़े घर में, कीमती घर में, कीमती मुलायम गद्दे पर आराम से निंद लगाना ।
पानवाला – धत् महाशय ! तुम तो दिमाग से बहुत हल्के हो ! जिसे इतना करने के पश्चात करने को कह रहे हो, वह तो मैं अभी हीं कर रहा था । इतना कुछ कर के अंत में तो आराम से सोने का ही बात कह रहे हो —- यह तो मैं पहले ही समझ गया था – और मौका मिलने पर मैं यही करता भी हूँ —–। इतनी देर से तुम्हारे बेकार की बातें सुनकर मुझे क्या फायदा हुआ ? जाऔ तो भाई साहब ! दूसरी जगह कहीं जाकर अपना ज्ञान बांटिए , यहां पर नहीं ।
कहानी शेष कर गुरु महाराज हम सभी को उद्देश्य कर बोलें– इसी प्रकार होये जा रहा है संसार जगत में । फिलहाल संसार में ज्ञानी इंसान, ज्ञान देने वाला मनुष्य का अभाव नहीं है । परंतु वें खुद भी ज्ञानी नहीं है ! उनका स्वयं का ज्ञान अर्जन अभितक संपूर्ण भी नहीं किया । इसी तरह देखा जाए _ जो ज्ञान देने का अधिकारी नहीं है — वह ज्ञान दे रहा है , ज्ञान की बातें कह रहा है। यह सब विषय में वह इंसान अगर सचमुच का ज्ञानी व्यक्ति का पाले में पड़ जाए तो — तो उसका यह पानवाले ग्राहक के तरह ही अवस्था होगा ! इसी तरह जगत में भिन्न-भिन्न मनुष्य सिर्फ ही नहीं , भिन्न-भिन्न प्रतिष्ठान या सम्प्रदाय, भिन्न-भिन्न दर्शन या मतबिचार भी सायद संपूर्ण नहीं है , फिरभी वह या वें सब चाह हर है इंसान मेरे छत्रछाया में आवे ! इन सभी में कुछ एकही बिचार युक्त होने के कारण वें सब इस प्रकार दल से जुङ रहा है ! फल स्वरूप वें शक्तिशाली हो रहा है । और तभी औरों के ऊपर जोर-जुलुम भी किया जा रहा है !
इसी प्रकार पृथ्वी पर सिर्फ अपना बिचार को प्रचार का प्रयास या अपने विचार में दूसरों को लाने का प्रयास या शक्ति द्वारा ( राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक,धार्मिक नीति ) दूसरे को dominate करने का प्रयास से _ पुरे पृथ्वी पर दंगे, फसाद, मारा-मारी, Blood – shed चल रहा है ।
अनेकों फिर ईश्वर का नाम लेकर इसे कर रहा है – पर यह सब मजहब या संप्रदाय का नेताओं भी तो पूर्ण ज्ञानी नहीं है ! वह नहीं जानते सर्वशक्तिमान ईश्वर या डिभाइन मदर ( Divine Mother) या मदर नेचर ( Mother Nature) – का इच्छा क्या है ? वें सब थोड़ी बहुत शक्ति संचय कर ( धार्मिक, राजनीतिक, इत्यादि नेता का मतलब परन्तु वह औरो पाँच व्यक्तियों से शक्तिशाली होना , अर्थात यह जन्म या पुर्व जन्म में साधन भजन द्वारा वे अपने आपको शक्तिमान कर चुका है ) उसका प्रयोग समाज या जनगण के ऊपर करना चाहता है । और इसी से ही होता है दुर्घटना ! शायद उसे सत्य का धारणा हो परंतु सही रास्ता बता नहीं सकता, फल स्वरूप मनुष्य को भ्रान्त कर देता है ! इसलिए जिसे समाप्त करना होगा ( आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ते जाना ) — उसे अभी कर लेना ही बुद्धिमान या विवेकवान का काम है ।।
समाप्त
(कहानी स्वामी परमानंद जी। संकलक श्रीधर बनर्जी , कथा प्रसंग ! Translated by Sudhir Sharma, a former student of Bangaram Paramananda Mission.)
ग्राहक – निर्बोध – बुद्धू ! जब सब कुछ हो जाए गा तो आराम करना बड़े घर में, कीमती घर में, कीमती मुलायम गद्दे पर आराम से निंद लगाना ।
पानवाला – धत् महाशय ! तुम तो दिमाग से बहुत हल्के हो ! जिसे इतना करने के पश्चात करने को कह रहे हो, वह तो मैं अभी हीं कर रहा था । इतना कुछ कर के अंत में तो आराम से सोने का ही बात कह रहे हो —- यह तो मैं पहले ही समझ गया था – और मौका मिलने पर मैं यही करता भी हूँ —–। इतनी देर से तुम्हारे बेकार की बातें सुनकर मुझे क्या फायदा हुआ ? जाऔ तो भाई साहब ! दूसरी जगह कहीं जाकर अपना ज्ञान बांटिए , यहां पर नहीं ।
कहानी शेष कर गुरु महाराज हम सभी को उद्देश्य कर बोलें– इसी प्रकार होये जा रहा है संसार जगत में । फिलहाल संसार में ज्ञानी इंसान, ज्ञान देने वाला मनुष्य का अभाव नहीं है । परंतु वें खुद भी ज्ञानी नहीं है ! उनका स्वयं का ज्ञान अर्जन अभितक संपूर्ण भी नहीं किया । इसी तरह देखा जाए _ जो ज्ञान देने का अधिकारी नहीं है — वह ज्ञान दे रहा है , ज्ञान की बातें कह रहा है। यह सब विषय में वह इंसान अगर सचमुच का ज्ञानी व्यक्ति का पाले में पड़ जाए तो — तो उसका यह पानवाले ग्राहक के तरह ही अवस्था होगा ! इसी तरह जगत में भिन्न-भिन्न मनुष्य सिर्फ ही नहीं , भिन्न-भिन्न प्रतिष्ठान या सम्प्रदाय, भिन्न-भिन्न दर्शन या मतबिचार भी सायद संपूर्ण नहीं है , फिरभी वह या वें सब चाह हर है इंसान मेरे छत्रछाया में आवे ! इन सभी में कुछ एकही बिचार युक्त होने के कारण वें सब इस प्रकार दल से जुङ रहा है ! फल स्वरूप वें शक्तिशाली हो रहा है । और तभी औरों के ऊपर जोर-जुलुम भी किया जा रहा है !
इसी प्रकार पृथ्वी पर सिर्फ अपना बिचार को प्रचार का प्रयास या अपने विचार में दूसरों को लाने का प्रयास या शक्ति द्वारा ( राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक,धार्मिक नीति ) दूसरे को dominate करने का प्रयास से _ पुरे पृथ्वी पर दंगे, फसाद, मारा-मारी, Blood – shed चल रहा है ।
अनेकों फिर ईश्वर का नाम लेकर इसे कर रहा है – पर यह सब मजहब या संप्रदाय का नेताओं भी तो पूर्ण ज्ञानी नहीं है ! वह नहीं जानते सर्वशक्तिमान ईश्वर या डिभाइन मदर ( Divine Mother) या मदर नेचर ( Mother Nature) – का इच्छा क्या है ? वें सब थोड़ी बहुत शक्ति संचय कर ( धार्मिक, राजनीतिक, इत्यादि नेता का मतलब परन्तु वह औरो पाँच व्यक्तियों से शक्तिशाली होना , अर्थात यह जन्म या पुर्व जन्म में साधन भजन द्वारा वे अपने आपको शक्तिमान कर चुका है ) उसका प्रयोग समाज या जनगण के ऊपर करना चाहता है । और इसी से ही होता है दुर्घटना ! शायद उसे सत्य का धारणा हो परंतु सही रास्ता बता नहीं सकता, फल स्वरूप मनुष्य को भ्रान्त कर देता है ! इसलिए जिसे समाप्त करना होगा ( आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ते जाना ) — उसे अभी कर लेना ही बुद्धिमान या विवेकवान का काम है ।।
समाप्त
(कहानी स्वामी परमानंद जी। संकलक श्रीधर बनर्जी , कथा प्रसंग ! Translated by Sudhir Sharma, a former student of Bangaram Paramananda Mission.)