यौवन की शत-शत लोभ लालच भी पुंडरीक को अपने बृद्ध माता-पिता का सेवा करने से बिंदु मात्र भी विमुख नहीं कर सका ! उस गांव का बड़े ही जागृत देवता भगवान श्री कृष्णा थे! वह माता-पिता के प्रति एक कनिष्ठ ( समर्पण ) भक्ति को देखकर उस लड़के पर विशेष रूप से प्रसन्न थें ! जो भी हो, इसी प्रकार दिन बीतता जा रहा था। परंतु एक दिन ऐसी घटना घटी जिससे पुंडरीक खुद भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया ! यह घटना को ही यहां कहा जाए !!
– उसे दिन भगवान श्री कृष्ण का कोई एक विशेष पूजा का दिन था ( शायद जन्माष्टमी भी हो सकता है ) गांव का सारे लोग उसे कृष्णा भगवान की मंदिर में एकत्रित हुए थे- वहां पर बड़े ही धूमधाम से भगवान श्री कृष्ण का पूजा होने को था, ढोल- नगाड़े नृत्य-संगीत होगें ! और यह सब कार्यक्रम देखने के लिए उसे स्थान पर नए-नए वस्त्र पहन कर मनुष्यों का भीड़ उमड़ी है। गांव का बच्चे से लेकर बूढ़े तक इकट्ठा हो चुका था उस कृष्णा मंदिर के सामने!
कम उम्र के युवाओं में से केवल मात्र पुंडरीक उसे दिन अपने घर से बाहर पांव तक नहीं रख सका। उस दिन बहुत गर्मी पड़ रही थी ! शाम ढलते ही उसके माता-पिता सोने के लिए बिस्तर पर थें, परंतु उन्होंने नींद नहीं आ रही थी। ! गर्मी से दोनों को व्याकुल और हांफते देख पुंडरीक ने माता-पिता का सर को अपना गोद में रखकर दोनों हाथ में ताड़ के पत्ते की पंखे लेकर हवा करने लगा ! ठंडी हवा का स्पर्श पाकर माता-पिता निश्चिंत होकर अपने बेटे के गोद में सर रख कर ही सो गए थे।
गांव का हर कोई उसे कार्यक्रम में पहुंचा है – केवल मात्र पुंडरीक को छोड़कर ! भगवान श्री कृष्ण ने देखा_ इस गांव का सबसे प्रिय भक्त यहां अनुपस्थित है! उसे तो लानाही होगा नहीं तो उनका लीला प्रचार किस प्रकार होगा!! पुंडरीक को लाने के लिए भगवान एक छल का आश्रय लिया ! वह मंदिर छोड़कर स्वयं आकर हाजिर में पुंडरीक के कुटिया में ! रौशनी से चारों तरफ जगमगा उठा- पुंडरीक भी सोचने लगा _” इतना रौशनी कहां से आया।” तभी भगवान श्री कृष्ण ने मधुर स्वर में पुंडरीक से उनके कार्यक्रम में न जाने का कारण पूछा। ऐसे ही तो घर में इतना रौशनी, उपर से एक ज्योतिर्मय मूरत उसके साथ बात कर रहा है यह देखकर पुंडरीक परेशान हुआ । बड़े ही कष्ट से उनके माता-पिता सोए हैं__ शायद जाग जाएं ! इसीलिए उसे ज्योतिर्मय शरीर धारी भगवान को इशारों से अपने उठ पर उंगली रखकर ” चुप” रहने के लिए कहा !
भगवान ने फिर से कहा- ” पुंडरीक ! मैं भगवान श्री कृष्णा ! तुम्हारे कुटिया में आया हूं , मुझे बैठने के लिए भी नहीं कहोगे ?”
पुंडरीक अपने मुंह पर अंगुली रखें धीरे से कहा ” वहां चुपचाप बैठिए! परंतु कोई बात नहीं करना ” !!
भगवान श्री कृष्ण ने फिर से कहा _”पुंडरीक मैं स्वयं भगवान ! कितने साधक हजारों साल साधना करने के पश्चात भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता _ और मैं आज खुद से तुम्हारे पास आया हूं ! क्या तुम जानते हो यह तुम्हारे लिए कितने सौभाग्य की बात है ! ” पुंडरीक का एकही बात _” तुम जो भी हो – सो हो ! अभी कृपया करके चुप रहो ! यह लो एक ईट दे रहा हूं इसके ऊपर बैठ जाओ।” यह कह कर पुंडरीक एक ईट को भगवान के तरफ आगे बढ़ा दिया ।
वही ईट के ऊपर खड़े होकर भगवान श्री कृष्णा ज्योतिर्मय एक मूर्ति का रूप ले लिएं!
इधर मंदिर में मूर्ति नहीं है यह देखकर गांव वासियों हर व्यक्ति इधर-उधर भाग-दौड़ कर खोज करने लगा। अचानक पुंडरीक का कुटिया में इतनी ज्योति दिखाई दे रहा है यह देखकर गांव वासियों ने वहां आकर देखा कि श्री कृष्ण का मूर्ति एक ईट के ऊपर खड़े (डंडयामान) हैं ! मराठी भाषा में ‘ बिट ‘ का मतलब ईट , और ‘ ठल ‘ का मतलब डंडयामान या स्थिर होता है , तभी से उस विग्रह ( मूर्ति )का नाम पड़ा ‘ बिट्ठलजी ‘। आगे चलकर वही विट्ठलजी का मंदिर महाराष्ट्र के भक्तों का एक प्रसिद्ध भक्ति केंद्र का रूप ले लिया। और ढेरों साधक यह विट्ठलजी को केंद्र करके अपना सिद्धियां प्राप्त किया था।
समाप्त
( कहानी स्वामी परमानंद जी। संकलक श्रीधर बनर्जी ‘ कथा प्रसंग’ । Translated by Sudhir Sharma , a former student of Bangaram Paramananda Mission.)