उनमें से मंझला भाई ज्ञानदेव या ज्ञानेश्वर था। जबकि अन्य दो भी असाधारण रूप से प्रतिभाशाली थे, परन्तु ज्ञानदेव की प्रतिभा की कोई सीमा नहीं थी । ऐसा कहा जाता है कि वेदज्ञान १० वर्ष की आयु में उनका वेदों का ज्ञान पूरा हो गया था और १२ वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ज्ञानेश्वरी गीता की रचना की ( परन्तु ऐतिहासिक अध्ययनों से पता चलता है कि उन्होंने १९ वर्ष की आयु में गीता भाष्य की रचना की थी )!
स्थानीय लोगों ने उन तीनों भाइयों और एक बहन को ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर और जगदम्बा का अवतार मानते थे! यह विचार कैसे लोगों के मन में बस गया, यही कहानी बताई जा रही है। एक दिन तीन भाई-बहन घूमते-घूमते कहीं एक विष्णु मंदिर के अंदर चले गए – जो उन दिनों अपराध माना जाता था क्योंकि उन्हें समाज में अब्राह्मण (क्षुद्र ) माना जाता था। इससे श्रद्धालुओं और मंदिर का कर्मचारियों में आक्रोश हो गया। उनमें से कुछ उन्हें मारने-पीटने का कोशिश किया, और कोई कहने लगे पहरेदार को बुलाकर धक्का मारकर उसे बाहर निकाल दिया जाए — वगैरह-वगैरह।
लेकिन उसी समय एक घटना घटी! प्रतिदिन मंदिर का पालतू हाथी देवता या मुख्य पुजारी के गले में पूजा का माला डालकर उन्हें स्वागत किया करता था !
परंतु उस दिन क्या हुई _ मंदिर में इतने दिनों से पालतू हाथी पूजा का विशेष माला भगवान को नहीं पहना कर _ बालक ज्ञान देव के गले में डाल दिया ! हर कोई यह देखकर ” रे, रे ” करने लगा । परंतु प्रधान पुजारी हर किसी को शांत होने को कहे — ” यह जब अनहोनी घट ही चुका है तो इसके पीछे अवश्य ही कोई आध्यात्मिक रहस्य है ।”
उनके बात सुनकर हर कोई कुछ क्षण के लिए चुप हो गया फिर भी अन्य कुछ पुजारियों ने – बालक ज्ञानेश्वर को नहीं छोड़ा । कहा , ए बालक ? सुना है तुम वेदों का बहुत ज्ञानी कहकर खुद को जाहिर करते हो ! तो फिर सुनाओ तो जरा वेदों का दो-चार श्लोक ? ” बालक ज्ञान देव जरा भी विचलित नहीं हुआ और कहा , ” आप सभी तो मेरे मुंह से वेदों का श्लोक तो अवश्य ही सुन सकेंगे – परंतु ईश्वर की अगर इच्छा हुई तो , वह भैंस ( मंदिर परिसर का कुछ ही दूरी पर एक भैंस चर रही थी ) के मुंह से भी वेद का श्लोक सुन सकेंगे !” _ यह बात कहकर बालक ज्ञानदेव वह भैंस के समीप गया और उसके शरीर और माथे पर हाथ फेरते हुए शान्त स्वर में कहा – ” हे भैंस ! मंदिर के इन पुजारियों को जरा वेद का श्लोक / मंत्र सुनाएं । ”
उपस्थित सभी लोगों को आश्चर्य करते हुए जब भैंस ने सबके सामने एक के बाद एक वेद मंत्रों का पाठ करना शुरू कर दिया। भैंस के मुख से मधुर लय में वैदिक श्लोको का उच्चारण होने लगा! तब से, लोगों को पता चला कि ज्ञानदेव या उनके भाई-बहन आध्यात्मिक रूप से बहुत उन्नत हैं । तब से, उन पर लगे सारे प्रतिबंध को हटा दिए गए !
जो भी हो , इसके बाद वह सब पंढरपुर का विट्ठल मंदिर में आकर हाजिर हुए और वहां से पुंडरीक का भक्ति भाव और उनके (भाई ) नाथ-जोगी का योग मार्ग को एकत्रित करके _ एक सहज – सरल साधना पंत मनुष्य में प्रचार करने लगा। वें सब भाई बहन ज्यादा दिन तक शरीर में रहा नहीं ,परंतु उस समय समाज में उच्च वर्ग के लोगों को निम्न वर्ग के लोगों के प्रति जो अत्याचार अनाचार था उसके विरुद्ध लड़ना सिखाया । ज्ञान देव और उनके भाई-बहन समाज में असहाय बेसहारा तथा उपेक्षित लोगों के लिए ईश्वर का आशीर्वाद के स्वरूप शरीर धारण किया था । यही परंपरा से कुछ महापुरुष वहां के समाज के आम मनुष्य के लिए काम किया था। इनमें से नामदेव , तुकाराम, एकनाथ प्रमुख थें । ज्ञान देव द्वारा रचित ज्ञानेश्वरी गीता पाठ करने से उनके असाधरण ज्ञान का परिचय मिलता है । बनोग्राम परमानंद मिशन में भी ‘ज्ञानेश्वरी गीता ‘ पुस्तक मौजूद है । गुरु महाराज वहां के उपस्थित अनेकों को यह पुस्तक को पढ़ने के लिए कहे थें।
समाप्त
(कहानी स्वामी परमानंद जी। संकलक श्रीधर बनर्जी कथा प्रसंग I Translated by Sudhir Sharma, a former student of Bangaram Paramananda Mission.)